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रविवार, 20 अक्तूबर 2013

सोमनाथ की कथा ब्रिटिश कुटिलता और सत्यार्थ प्रकाश

अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए जो बौद्धिक अभियान चलाया था उसमे दो महत्वपूर्ण बातें थीं एक हिन्दू समाज को एक समाज के स्थान पर कई छोटे छोटे आपस में संघर्षरत समाजों से मिल कर बना हुआ सिद्ध करना और दूसरी बात थी हिन्दुओं को सदैव से पराजित होते रहने वाली तथा युद्ध से भयभीत रहने वाले सिद्ध करना और इसी के अंतर्गत यह बात प्रचारित की गयी की जब सोमनाथ मन्दिर पर मुहम्मद गजनबी ने आक्रमण किया तब उस मन्दिर के अंदर गजनबी की सेना से भी अधिक संख्या में पंडित-पुजारी थे परन्तु उन्होंने युद्ध करने के स्थान पर शिव से रक्षा के लिए याचना करना अधिक उचित समझा और इसी कारण वो सभी मारे गये और मन्दिर का ध्वंस हो गया । जिस समय मन्दिरर टूट रहा था उस समय मंडित के पण्डे - पुजारी जो की मुहम्मद गजनबी की सेना से संख्या में कई गुना ज्यादा थे वो भगवान् के पैरों में लोट कर सहायता मांग रहे थे और उन्होंने आक्रमण का कोई भी प्रतिरोध नहीं किया था |मुहम्मद गजनबी के पास केवन २०० सैनिक थे | अंग्रेजों की उस कल्पना को जनसामान्य में प्रचारित करने का कार्य किया दयानंद सरस्वती ने जिन्होंने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश मे भी ऐसा ही वर्णन कर दिया क्यूँकी दयानंद का उद्देश्य किसी भी प्रकार और किसी भी मुल्य पर मूर्तिपूजा का खंडन और मुर्तिपुजकों को हीन और अकर्मण्य सिद्ध करना था |क्यूंकि दयानंद सरस्वती वेश भूषा में और भाषा वुँव्हार में भारतीय लगते थे  इस कारण हिन्दू समाज का एक बड़ा हिस्सा इस बात को आज भी सत्य मानता है ; आइये आज हम आप को वास्तविक तथा तव्थों पर आधारित कहानी सुनते हैं सोमनाथ मंदिर की |


महमूद ने सोमनाथ पर आक्रमण १०२६ में  किया था | विश्व के सबसे कुख्यात लुटेरे के रूप में यह महमूद का आक्रमण था |मुल्तान से वह मरुभूमि से होकर गुजरात गया | मार्ग के लिए सब व्यवस्था करके वह चला था | केवल पानी और रसद के लिए तीस हजार ऊँटों का काफिला साथ में था | वह अनहिलवाड़ की दिशा में बाधा | मोढेरा के पास बीस हजार की सेना ने उसका मार्ग रोका | यह प्रतिरोध अद्भुत था | इस छोटी हिन्दू सेना ने अद्वतीय वीरता का प्रदर्शन किया | अनहिलवाड़ का रजा भीमदेव  नगर छोड़ कर प्रतिकार संगठित करने निकला था | उसने इस्चय किया था की महमूद को रोक न पाय तो भी उसको सुरक्षित वापास नहीं जाने देगा उसकी व्यवस्था में वह लग गया |

सोमनाथ मंदिर के आसपास परकोटा था पहले दिन हिन्दुओं कप्रतिरोध इतना प्रखर था की महूद की सेना जो की घेरा डालकर कोट में घुसने का प्रयास कर रही तिह थकी - हारी चारों और से हट गयी | दुसरे दिन सैनिकों के संरक्षण में दीवारें तोड़नेवाले दिनभर प्रयास करते रहे महमूद के सैनिक मरे जा रहे थे दीवारें तोड़ने वाले भाग रहे थे |तीसरे दिन और तीखी मार काट हुई | राणा भीमदेव द्वारा भेजे गए राजपुत्र अपने सैन्य दल के साथ भेजे गए जिससे प्रतिकार में और तेजी आ गयी |मंदिर के रक्षण के लिए के लिए ऐसा राणकन्दं विश्व में कही नहीं हुआ था | कम से कम पचास हजार हिन्दुओं ने इस युद्ध में स्वयं को समर्पित कर दिया था |

महमूद गजनबी सोमनाथ में ज्यादा रुका नहीं परन्तु अब वापसी आसन नहीं थी ; वापसी के मार्ग पर भीमदेव खड़ा था | महमूद ने कच्छ के रण से जाना उचित समझा | वह मार्ग बहुत मुश्किलों से भरा हुआ था | उसे किस एभि बस जिन्दा वापस पहुँचाना था भूख और प्यास के कारन उसकी सेना का एक आहूत पड़ा भाग नष्ट हो गया था |बड़ी मुश्किल से महमूद मुल्तान पहुंचा और मंसूर के मार्ग से ही गजनी वापस लौट सका |उसकी इच्छा थी की कुछ वर्ष वह सोमनाथ में रहे परन्तु वहां रहने की उसकी हिम्मत नहीं हुई सोमनाथ को अपनी राजधानी बनाने का विचार उसने अपने मन से निकाल दिया , इतना ही नहीं सोमनाथ प्रदेश पर नियुक्त करने के लिए उसे एक भी व्यक्ति नहीं मिला |

तो यह थी सोमनाथ के संघर्ष की वास्तविक एतिहासिक कथा | आप स्वयं ही विचार करें की क्या महादेव के भक्त युद्ध से विमुख या मृत्यु से भयभीत हो सकते हैं ? अब अंग्रेजों या उनकी बौद्धिक कठपुतली दयानंद के बनाये हुए भ्रम जाल से बहार निकलें और गर्व करें उन पर जिन्होंने सोमनाथ का मंदिर बनाया था और जिन्होंने उसकी रक्षा के लिए अपने प्राण की आहुति दी | हिन्दुओं  का इतिहास पलायन का नहीं अपतु सतत संघर्ष का रहा  है |

सन्दर्भ ग्रन्थ -
१- मुस्लिम आक्रमण का हिन्दू प्रतिरोध- डा शरद हेबालकर 
२-मेवाड़ सगा  विकास पब्लिशिंग हाउस -मंकेकर  D.R.
३-हिन्दुशाही ऑफ़ अफगानिस्तान एंड पंजाब  - योगेन्द्र मिश्र ,पटना 
४- हिस्ट्री ऑफ़ ओडिशा कटक १९५९ - हरिकृष्ण महताब  
५- ग्लोरी ऑफ़ गुजरात १९५५ K M मुंशी 

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