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बुधवार, 6 जुलाई 2016

भारतीय इतिहास के सबसे बड़े सेक्युलर राजा की विनाश-गाथा



जब उत्तर भारत ख़िलजी, तुग़लक़, ग़ोरी, सैयद, बहमनी और लोदी वंश के विदेशी मुसलमानों के हाथों रौंदा जा रहा था तब भी दक्षिण भारत के "विजयनगर साम्राज्य" (1336-1665) ने 300 से अधिक वर्षों तक दक्षिण मे हिन्दू अधिपत्य कायम रखा ! इसी विजयनगर साम्राज्य के महाप्रतापी राजा थे "कृष्णदेव राय" ।


बाबरनामा, तुज़के बाबरी सहित फ़रिश्ता, फ़ारस के यात्री अब्दुर्रज्जाक ने "विजयनगर साम्राज्य" को भारत का सबसे वैभवशाली, शक्तिशाली और संपन्न राज्य बताया है, जहां हिन्दू-बौद्ध-जैन धर्मामलंबी बर्बर मुस्लिम आक्रान्ताओं से खुद को सुरक्षित पाते थे । जिनके दरबार के 'अष्ट दिग्गज' में से एक थे महाकवि "तेनालीराम", जिनकी तेलगू भाषा की कहानियों को हिन्दी-उर्दू मे रूपांतरित कर "अकबर-बीरबल" की झूठी कहानी बनाई गयी ।बुद्धिमान बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया. बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं.


इसी शक्तिशाली साम्राज्य मे एक "सेक्युलर राजा रामराय" का उदय हुआ, जिस "शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य" पर 300 साल तक विदेशी आक्रांता गिद्ध आंख उठा कर देखने की हिम्मत नही कर सके थे, उसे एक सेक्युलर सोच ने पल भर मे खंडहर मे तब्दील कर दिया ।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

जम्मू कश्मीर समस्या :केवल कुछ मिथक

jammu kashmeer state
jammu kashmeer state
पिछले ६५ वर्षों में जम्मू-कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में इतने सारे मिथक गढ़े गए हैं कि शेष भारत के लोगों कि इस राज्य के सम्बन्ध में बनी हुई समझ इन मिथकों के आधार पर ही है और साधारण भारतीय को तथ्य कम पता है मिथक ज्यादा पता हैं।

सर्वप्रथम तो राज्य के लिए "कश्मीर " शब्द का प्रयोग करना ही गलत है राज्य का नाम "जम्मू और कश्मीर " है और "कश्मीर घाटी" क्षेत्रफल के अनुसार राज्य का केवल १५% ही हैं और राज्य के २२ जिलों में से मात्र 10 ही कश्मीर घाटी में आते हैं। राज्य का कुल क्षेत्रफल 222,236 वर्ग किलोमीटर है जिसमे से भारत के नियंत्रण में 101387 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से कश्मीर घाटी 15,948 वर्ग किलोमीटर अर्थात १५.७३ प्रतिशत , जम्मू 26,293 वर्ग किलोमीटर अर्थात २५.९३ % और लद्दाख 59,146 वर्ग किलोमीटर अर्थात ५८.३३ % है। अतः राज्य को कश्मीर मानना ही मिथक है और गलत भी है राज्य को कश्मीर नहीं अपितु "जम्मू -कश्मीर " कहना चाहिए।


दूसरा बड़ा मिथक है "विवाद" शब्द का प्रयोग करना क्यूंकि यह कोई विवाद है ही नहीं। जम्मू कश्मीर राज्य का भारत में विलय पूर्ण हो चूका था औऱ जम्मू कश्मीर के भारत में विलय और अन्य रियासतों के भारत के विलय में वैधानिक रूप से कोई भी अंतर नहीं था इसलिए विवाद शब्द का प्रयोग ही अनुचित है।

रविवार, 26 जनवरी 2014

आर्य आक्रमण की कल्पना मात्र एक कुटिल कल्पना -२

bull in hitti
हित्ती(कुर्दिस्तान ) सभ्यता में वृषभ 
 हमारी पाठ्य पुस्तकों में और इतिहास की पुस्तकों के यह मिथक बार बार प्रचारित किया जाता रहा है की "आर्य  और द्रविड़ " नस्लीय शब्द है , द्रविड़ यहाँ के मूल निवासी थे और आर्य विदेशी आक्रमणकारी थे | यद्यपि यह धरना किसी भी साक्ष्य पर आधारित नहीं थी और पूर्णतयः असत्य भी सिद्ध हो चुकी है परन्तु फिर भी कुछ लोग इस बात को ही सत्य मानते रहते हैं तो एक बार पुनः तथ्यों का विश्लेषण कर लिया जाय |

इस सिद्धांत के समर्थक बार बार प्राचीन भारतीय संस्कृति और कुछ प्राचीन यूरोपीय संस्कृतियों के मध्य समानता के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं  की आर्य नमक एक आक्रमणकारी जाति थी जो की यूरोप से आई थी जबकि इससिद्धांत के विरोधियों का कहना है की कोई बाहरी आक्रमणकारी भरत में नहीं आया था अपितु भारतवासी भारत से बहार के देशों में गए थे और अपने साथ साथ भारत का धर्म ग्रान और संस्कृति भी ले गए थे | आर्य आक्रमंसिद्धंत के कल्पकों का मानना है की आर्य आक्रमण के समय भारत के द्रविड़ो का राजा शिव था और हिन्दुओं के देवता महादेव पशुपति महादेव को ही वो लोग दद्रविनो का रजा मानते हैं और उनके अनुसार "मूल निवासी द्रविड़ों " ने अपने राजा  को याद रखने के लिए  ही उसकी उपासना करना प्रारंभ कर दिया था | यदि इन दोनों बातों को सत्य मान लिया जाय तो भारत के बहार के देवताओं की उपासना तो भारत में होनी चाहिए थी परन्तु पशुपति महादेव शिव की उपासना भारत के बाहर नहीं होनी चाहिए थी  |

वर्त्तमान तुर्किस्तान की प्राचीन संस्कृति हित्ती थी जो की भारतीयों ने ही बसाई थी |हित्ती अर्थात खत्ती या खत्री या क्षत्रिय आज भभारत में कई स्थानों पर क्षत्रिय जाति स्वयं को खत्री कहलाती है |आज से लगभग ३७५० वर्ष पूर्व बनाये गए उनके मंदिरों में देवता भारतीय शैली में पशुओं के साथ दिखाए गए हैं | हित्त्यों का प्रथ्गम साम्राज्य आज से लगभग चार सहस्त्र वर्ष पूर्व अर्थात लगभग ओ सहस्त्र इसा पूर्व का था और यह आर्य आक्रमण सिद्धांत के कल्पकों द्वारा सुझाई गयी तिथि (एक सहस्त्र पांच सौ ईसा पूर्व ) से भी अदिक प्राचीन है | अर्थात यदि उस कल्पना की समस्त बातें सत्य होती तो भी हित्ती सभ्यता के ये मंदिर और धर्म "द्रविड़ो के रजा शिव " के जन्म से भी पूर्व के हैं | 

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

मजहब हमें सिखाता है केवल बैर रखना

सबसे पहले तो ये समझ लेना चाहिए की धर्म और मजहब लग अलग हैं और जब आप धम्र और मजहब में अंतर समझ जायेंगे तो आप को ये भी पता चल जाएगा की मजहब बैर करना ही सिखाता है | केवल बैर ही नहीं जो भी मजहब के बाहर हैं उनकी हत्याएं करना और और उन पर हर तरह के अत्याचार करना सिखाता है मजहब | धर्म की परिभाषा दी गयी है "धारयति इति धर्मः" अर्थात जो धारण करने के योग्य हो वो धर्म  है जबकी मजहब कहता है की जो कुरआन और पैगम्बर में विश्वास रखता हो वो ही मजहब है और बाकी सब कुफ्र और काफिरों की हत्या का सीधा आदेश है मजहब का तो ; मजहब तो बैर करना ही सिखाता है |

इस्लाम का मूल ही गैर इस्लामिक लोगों से टकराव है | मुस्लिम अल्लाह की उपासना करते हैं और अल्लाह शब्द अरबी भाषा के "अल - इलाही"शब्द से बना है | अरबी भाषा में "इलाही" का अर्थ होता है देवी और इस्लाम के उदार के समय अरब के सभी कबीलों की अपनी अपनी अराध्य देवियाँ थीं परन्तु मुहम्मद ने अपनी देवी को "अल इलाही" कहना शुरू कर दिया | अल का अर्थ होता एह आंग्लभाषा का THE या हिंदी का "एकमात्र" अर्थात इस्लाम का उधर ही है किसी भी दुसरे की आस्थाओं को मान्यता न देना तो आप स्वयं ही सोचिये की मजहब बैर रखना सिखाएगा या नहीं ?

रविवार, 20 अक्टूबर 2013

सोमनाथ की कथा ब्रिटिश कुटिलता और सत्यार्थ प्रकाश

अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति को नष्ट करने के लिए जो बौद्धिक अभियान चलाया था उसमे दो महत्वपूर्ण बातें थीं एक हिन्दू समाज को एक समाज के स्थान पर कई छोटे छोटे आपस में संघर्षरत समाजों से मिल कर बना हुआ सिद्ध करना और दूसरी बात थी हिन्दुओं को सदैव से पराजित होते रहने वाली तथा युद्ध से भयभीत रहने वाले सिद्ध करना और इसी के अंतर्गत यह बात प्रचारित की गयी की जब सोमनाथ मन्दिर पर मुहम्मद गजनबी ने आक्रमण किया तब उस मन्दिर के अंदर गजनबी की सेना से भी अधिक संख्या में पंडित-पुजारी थे परन्तु उन्होंने युद्ध करने के स्थान पर शिव से रक्षा के लिए याचना करना अधिक उचित समझा और इसी कारण वो सभी मारे गये और मन्दिर का ध्वंस हो गया । जिस समय मन्दिरर टूट रहा था उस समय मंडित के पण्डे - पुजारी जो की मुहम्मद गजनबी की सेना से संख्या में कई गुना ज्यादा थे वो भगवान् के पैरों में लोट कर सहायता मांग रहे थे और उन्होंने आक्रमण का कोई भी प्रतिरोध नहीं किया था |मुहम्मद गजनबी के पास केवन २०० सैनिक थे | अंग्रेजों की उस कल्पना को जनसामान्य में प्रचारित करने का कार्य किया दयानंद सरस्वती ने जिन्होंने अपनी पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश मे भी ऐसा ही वर्णन कर दिया क्यूँकी दयानंद का उद्देश्य किसी भी प्रकार और किसी भी मुल्य पर मूर्तिपूजा का खंडन और मुर्तिपुजकों को हीन और अकर्मण्य सिद्ध करना था |क्यूंकि दयानंद सरस्वती वेश भूषा में और भाषा वुँव्हार में भारतीय लगते थे  इस कारण हिन्दू समाज का एक बड़ा हिस्सा इस बात को आज भी सत्य मानता है ; आइये आज हम आप को वास्तविक तथा तव्थों पर आधारित कहानी सुनते हैं सोमनाथ मंदिर की |

रविवार, 19 मई 2013

गोडसे या गाँधी : महात्मा कौन ?

नाथूराम विनायक गोडसे या मोहन दास करमचंद गांधी , इन दोनों में से महात्मा किसे कहना चाहिए और जिसे भी कहें उसे क्यूँ कहना चाहिए ? स्वाभाविक ही जिसके कार्य महात्मा जैसे उसे ही महात्मा कहा जाना चाहिए आज तक कार्यों पर चर्चा किये बिना ही गाँधी को महात्मा कहा जाता रहा है | और मोहन दास करमचंद गाँधी के समर्थक चर्चा करना ही नहीं चाहते हैं | ये लोग इस पर तो चर्चा करते हैं  की राम मर्यादा पुषोत्तम अनंत कोटि ब्रह्माण्ड  नायक थे या नहीं ; ये लोग इस पर भी चर्चा करते हैं की कृष्ण योगीश्वर थे या नहीं ; ये लोग इस पर भी चर्चा करते हैं की शिव सम्पूर्ण जगत का कल्याण करने वाले महादेव हैं या नहीं ; ये लोग इस पर भी चर्चा करते हैं की महिषासुर और महिषासुरमर्दिनी में से कौन सही था और कौन गलत ? हमें कोई भय भी नहीं ऐसी चर्चाओं से क्यूँ की सत्य को भय नहीं होता है |परन्तु जैसे ही गाँधी की बात आती है ये लोग चर्चाओं को नकारने लगते हैं | क्यूँ ? किस भेद के खुलने का भय है ? किस सत्य के सामने आने का भय है ?क्या हिया जो छिपाया जाता रहा है ?क्यूँकी कुछ तो है जो की मोहनदास करमचंद गाँधी के समर्थक झूठ बोलते हैं और अब हम उन्ही झूठों को देखने जा रहे हैं | आइये  गोडसे जी और गाँधी जी के कायों का विश्लेषण करें |

सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

हमें क्यूँ नहीं चाहिए हिन्दू मुस्लिम एकता

हमें हिन्दू मुस्लिम एकता नहीं चाहिए है और हिन्दू - मुस्लिम एकता हमारे लिए अनावश्यक ही नहीं अपितु अवांछनीय भी है क्यूँकी जब जब भी हिन्दू मुस्लिम एकता जैसी बातें की गयी हैं तब तब हिन्दुओं के छल हुआ है | हर वह युद्ध जो हिन्दू और मुस्लिमों ने साथ साथ मिलकर (कथित रूप से ) लड़ा है उसमे बलिदाल केवल और केवल हिन्दुओं ने दिया है और यदि कोई लाभ हुआ है  तो वो मुस्लिमों का हुआ है |

 भारत में पहला मुस्लिम आक्रमण 712 में सिंध के रजा दाहिर पर हुआ था और उसके बाद लगभग 1100 वर्षों तक भारत में में केवल हिन्दू और मुस्लिम दो ही शक्तियां थीं और इनके बीच लगातार संघर्ष चलता रहा था इसलिए "हिन्दू -मुस्लिम"एकता जैसा कोई भी भ्रम फैलाने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई मुस्लिमों को परन्तु अंग्रेजों के आने के बाद पहली बार मुसलमानों को अंग्रेजों से लड़ने के लिए हिन्दुओं की सहायता की आवश्यकता अनुभूत हुई और उस समय मुस्लिमों ने पहली बार इस लुभावने चल का प्रयोग किया था | यह एक कटु सत्य है और सिद्ध भी किया जा सकता है  की 1857 में हिन्दू तो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए विदेशियों से लड़ रहे थे परन्तु मुस्लमान केवल इस्लाम के लिए काफिरों से