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हित्ती(कुर्दिस्तान ) सभ्यता में वृषभ |
इस सिद्धांत के समर्थक बार बार प्राचीन भारतीय संस्कृति और कुछ प्राचीन यूरोपीय संस्कृतियों के मध्य समानता के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं की आर्य नमक एक आक्रमणकारी जाति थी जो की यूरोप से आई थी जबकि इससिद्धांत के विरोधियों का कहना है की कोई बाहरी आक्रमणकारी भरत में नहीं आया था अपितु भारतवासी भारत से बहार के देशों में गए थे और अपने साथ साथ भारत का धर्म ग्रान और संस्कृति भी ले गए थे | आर्य आक्रमंसिद्धंत के कल्पकों का मानना है की आर्य आक्रमण के समय भारत के द्रविड़ो का राजा शिव था और हिन्दुओं के देवता महादेव पशुपति महादेव को ही वो लोग दद्रविनो का रजा मानते हैं और उनके अनुसार "मूल निवासी द्रविड़ों " ने अपने राजा को याद रखने के लिए ही उसकी उपासना करना प्रारंभ कर दिया था | यदि इन दोनों बातों को सत्य मान लिया जाय तो भारत के बहार के देवताओं की उपासना तो भारत में होनी चाहिए थी परन्तु पशुपति महादेव शिव की उपासना भारत के बाहर नहीं होनी चाहिए थी |

हित्ती सूर्योपासक थे | रितुदेव सबसे लोकप्रिय देवता था \ वृषभ उसका वाहन था | परशु और त्रिशुक्ल उसके शास्त्र थे |वह हित्तियों का प्रमुख युद्ध देवता भी था (बिन्कुल हिन्दू धर्म की तरह ) | अर्थात नाम ही अलग है हैं तो यह महादेव पशुपति शिव ही |
अरित्र शिव की शक्ति थी | पृथ्वी एवं आकाश की रानी और हित्ती राष्ट्र और राज्य की संरक्षिका थी | हित्ती उसे जगत्माता के रूप में देखते थे | सिंह उसना वाहन था | वह दुर्गारूप थीं और "बोघज कुई" में उसका मंदिर था |उसी के अन्य नाम सिबेले या शिबिली था |
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हित्ती सभ्यता |
इस प्रकार हम देखते हैं की कथित "आर्य आक्रमण " के बहुत पहले की शिव- शक्ति का अस्तित्व था इसलिए शिव कोई राजा नही था अपितु त्रिदेवों में से एक जगत के आधार युद्ध कला के जनक और इस जगत का संघार करने वाले महादेव हैं | आर्य आक्रमण का सिद्धांत मात्र एक कुटिल कल्पना है जो की भर्त्यूं में हीन भावना भरने के लिए की गयी है |
सन्दर्भ : कृण्वन्तो विन्श्वर्यम (शरद हेबालकर)ISBN 978-81-907895-3-0
सन्दर्भ : कृण्वन्तो विन्श्वर्यम (शरद हेबालकर)ISBN 978-81-907895-3-0
मैं आपकी मान्यता से सहमत हूं। इस संबंध में विचार विमर्श करते समय जैन शास्ऱों का भी संदर्भ लेना चाहिए। योरपीय इतिहासकारों की मान्यता को ध्वस्त करने के लिए समग्र प्रयासों की जरूरत है। भारतवर्ष का इतिहास अब नए सिरे से और नए दृष्टिकोण से लिखा जाना चाहिए। ऐंग्लोसैक्सन सभ्यताओं ने दुनिया की हर प्राचीन सभ्यता को नष्ट किया है, वह चाहे अमेरिका के मूल निवासी हों या अफ्रीका उपमहाद्वीप के मूल निवासी हों। उन्होंने सभी को कुचला है और अपनी मान्यताएं थोपी हैं। हमारे देश में रोमीला थापर जैसी कथित इतिहासकार भी हैं जो राम के अस्तित्व को ही कपोलकल्पना मानती हैं।
जवाब देंहटाएंमैं आपकी मान्यता से सहमत हूं। इस संबंध में विचार विमर्श करते समय जैन शास्ऱों का भी संदर्भ लेना चाहिए। योरपीय इतिहासकारों की मान्यता को ध्वस्त करने के लिए समग्र प्रयासों की जरूरत है। भारतवर्ष का इतिहास अब नए सिरे से और नए दृष्टिकोण से लिखा जाना चाहिए। ऐंग्लोसैक्सन सभ्यताओं ने दुनिया की हर प्राचीन सभ्यता को नष्ट किया है, वह चाहे अमेरिका के मूल निवासी हों या अफ्रीका उपमहाद्वीप के मूल निवासी हों। उन्होंने सभी को कुचला है और अपनी मान्यताएं थोपी हैं। हमारे देश में रोमीला थापर जैसी कथित इतिहासकार भी हैं जो राम के अस्तित्व को ही कपोलकल्पना मानती हैं।
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