फ़ॉलोअर

रविवार, 19 जून 2011

बाबा रामदेव के विरुद्ध मीडिया का दुष्प्रचार : उनके तर्कसंगत उत्तर

योग गुरु बाबा रामदेव और उनके भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन के विरुद्ध मीडिया का दुष्प्रचार  चल रहा है और निश्चित रूप से यह सब मूल विषय से ध्यान हटाने के लिए , इस आन्दोलन को कमजोर करने के लिए उन व्यक्तियों के इशारे पर हो रहा है जो स्वयं ही भ्रष्ट हैं और ये आरोप कितने तथ्यहीन हैं आइये ये देख लेते हैं |
बाबा रामदेव को उतना जन  समर्थन नहीं मिला जितना की अन्ना हजारे को 
अन्ना हजारे ने अपना अनशन जंतर मंतर पर किया था | यह स्थान एक सड़क का छोटा सा हिस्सा है जो की धरना प्रदर्शनों के लिए आरक्षित है , अन्ना हजारे का धरना स्थल केवल ५ हजार लोगों से भार गया था जबकी स्वामी बाबा रामदेव ने तो अपने सत्याग्रह का प्रारंभ ही ४० जहर लोगों के साथ किया था |इसके अतिरिक्त अन्ना हजारे का अनशन शुरू हेने से कुछ दिन पहले से ही मीडिया ने उसके पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया था और इस प्रकार का प्रचार किया था जिससे अन्ना का समर्थन करना फैशन बन गया था और जंतर-मंतर पर उपस्थित लोगों में से अधिकांश ऐसे ही थे जो की शायद सोशल नेट्वर्किंग के लिए फोटो खिचवाने गए थे उनको ना तो लोकपाल या जनलोकपाल के बारे में पता था और ना ही  इसके प्रभाव के बारे में और दिल्ली के ही लोग थे जो एक दिन की पिकनिक पर आये थे जबकी बाबा रामदेव के सत्याग्रह में भारत के प्रत्येक स्थान से प्रत्येक आयु , प्रत्येक आर्थिक और सामाजिक वर्ग के लोग (दिल्ली के लोगों की भी संख्या काम नहीं थी) आये हुए थे और उन सबको पता था की सत्याग्रह की मांगें क्या हैं और उनका क्या प्रभाव होगा और उसमे से अधिकांश आमरण अनशन के लिए आये थे ना की फोटो इकट्ठी करने के लिए तो किसका समर्थन ज्यादा था इसका निर्णय आप ही करिए |

बाबा रामदेव के पांच सितारा सुविधाएं
एक और दुष्प्रचार , बाबा स्वामी रामदेव जी के सत्याग्रह में १० लाख लोगों के आने का अनुमान था और उसमे से अधिकांश लोग आमरण अनशन के लिए आ रहे थे ,और भारत के सुदोर स्थानों से आ रहे थे जो की अन्न को त्याग कर केवल जल पीकर ही रामलीला मैदान में बैठने वाले थे | उन सत्याग्रहियों की सुविधा के लिए टेंट लगवाया गया था और पीने के पानी की व्यवस्था की गयी थी |
क्या जून की तपती दोपहरमें जब की दिल्ली का तापमान ४८ डिग्री तक सेल्सियस पहुँच जाता है तब पंखों और पानी की व्यवस्था करना पांच सितारा व्यवस्था है ?? और पंडाल ही नहीं मंच पर भी केवल इतनी ही व्यवस्था थी | हा र्किसी ने चित्रों में देखा होगा की लोग जमीन पर सो रहे थे | जहाँ तक वातानुकूलन की बात है तो तो केवल वहां पर बने चिकित्सालय में था |अब क्या रोगियों को कुछ सुविधाएँ देना भी आपत्ति जनक है ??

बाबा रामदेव ने अन्ना से प्रतिस्पर्धा के लिए आन्दोलन प्रारंभ किया
बाबा रामदेव तब से भ्रष्टाचार के विरुद्ध जन चेतना जागृत करने का प्रयास कर रहे थे जब अन्ना को महाराष्ट्र के बाहर कोई जनता भी नहीं था | बाबा रामदेव १ लाख किलोमीटर जी जन चेतना यात्रा कर रहे थे बाबा रामदेव इस यात्रा ने बाद अपने आश्रम में तो नहीं बैठने वाले थे | वास्तव में अन्ना हजारे , जन्लोक्पल और IAC  अचानक से सामने आ गये थे बाबा के सभी कार्यक्रम तो पूर्व निर्धारित थे |

बाबा रामदेव द्वारा सरकार को दी गए चिट्ठी
बहुत से लोग आचार्य बालकृष्ण की उस चिट्ठी को बाबा की गलती बता रहे हैं जिसको देश की जनता ने प्रथम दृष्टया ही नकार दिया है और जिसमे केवल इतना ही लिखा है की अगर सरकार ६ जून तक बाबा रामदेव की सभी मांगें मान लेती है तो बाबा ६ जून को अनशन ख़तम कर देंगे | अब इसमें आपत्तिजनक क्या हिया मुझे ये अभी तक समझ में नहीं आ रहा है अगर सरकार सभी बातें मान लेती है तो अनशन तो ख़तम होना ही है | हां अगर कोई ये पूछता है की तब ये चिट्ठी लिखी ही गयी तो इसका सीधा सा उत्तर है सरकार ने धमकी दी थी क्योंकी जिस समय ये चिट्ठी लिखी गयी थी उस समय पुलिस बाबा को गिरफ्तार करने के लिए भी तैयार खादी थी और रामलीला मैदान में भी भारी पुलिस बल उस समय आ चुका था |

बाबा रामदेव महिलाओं के कपडे पहन कर क्यों भागे उन्होंने गिरफ्तारी क्यों नहीं दी ??
यह तथ्य कुतर्क शास्त्रियों को सबसे ज्यादा पसंद आ रहा है | सबसे पहली बात तो यह की "किसी महिला के लिए कोई काम करना केवल इसलिए गर्व का विषय हो जाना की उसको साधारणतयःपुरुष करते हैं या किसी पुरुष के लिए कोई काम करना केवल इसलिए ग्लानी का विषय बन जाना की उसे साधारणतयः महिलायें करती हैं " यह भारतीय संस्कृति नहीं है यां तो अरबी या पाश्चात्य संस्कृति का अंश हिया जिसमे महिलाओं को हीनतर माना गया है तो महिलाओं के कपडे पहनने में कोई खराबी मुझे तो नहीं दिखती है | इसके बाद जहाँ तक बाबा के भागने का प्रश्न है तो शिवाजी भी छिपकर भागे थे और महाराणा प्रताप भी अपना छात्र दुआरे को देकर भाग गए थे फिर भी वो हमारे नायक है | आचार चाणक्य ने भी कहा है "बलिदान साधन है साध्य नहीं इसलिए बलिदान पौरुषहीन नहीं होना चाहिए व्यर्थ नहीं होना चाहिए |" | अब अंतिम प्रश्न बाबा ने गिरफ्तारी क्यों नहीं दी , मैं स्वयं इस बात का प्रत्यक्षदर्शी हूँ की पुलिस बाबा को गिरफ्तार करने के लिए नहीं अपितु उनकी हत्या करने के लिए आयी थी | पुलिस के पास ना तो वारंट था और ना ही वो वो बाबा की बातें सुन रही थी पुलिस वहां पर केवल उपद्रव कर रही थी |

बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण जैसे रोते हुए व्यक्ति हमारे नायक कैसे हो सकते हैं -
लोग कह रहे हैं की बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण मीडिया के सामने रो रहे थे इसलिए उनका समर्थन काम हो गया है और रोने वाले कमजोर व्यक्ति नायक कैसे हो सकते हैं ??पुनः आदर्शों की समस्या , क्या केवल रोने से ही कोई व्यक्ति कमजोर सिद्ध हो जाता है ?? सीता हरण के बाद राम भो रोते हुए कह रहे थे "हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी , तुम देखि सीता मृगनयनी" , इसी तरह लक्ष्मण को शक्ति लगाने के बाद भी राम ने विलाप किया था परन्तु आज भारत का जनमानस उनको अनंतकोटी ब्रहमांड नायक कहता है | बाबा राम देव या आचार्य बालकृष्ण अपने घावों के कारण नहीं रो रहे थे , अपने अपमान के कारण नहीं रो रहे थे अपने कष्ट के कारण नहीं रो रहे थे या अपने आन्दोलन पर हुए कुठाराघात के कारण नहीं रो रहे थे | उनके रोने का कारण सत्याग्रहियों पा रहुये अत्याचार थे देश सेवा के लिए आये हुए लोगों की बुरी हालत थी और सत्याग्रहियों पर हुए अत्याचार अगर नायकों की आँखों में आंसूं ला देते हैं तो यह उनके प्रति सम्मान को बढ़ने वाला होगा |

बाबा रामदेव ने आन्दोलन समाप्त कर दिया- बाबा रामदेव का आन्दोलन असफल हो गया
नहीं आन्दोलन असफल नहीं हुआ है|लक्ष्य बलिदान नहीं अपितु जान चेतना थी और पुरे भारत में जन चेतना आ चुकी है |सोनिया गांधी बाबा के डर से अपने 12 निकट सम्बन्धियों के साथ स्वित्ज़रलैंड चली गयी थीं और सारे देश को मीडिया का भी असली चेहरा दिख गया और भ्रष्टाचारी कौन है ये भी पता चल गया |

बाबा रामदेव के पास इतना पैसा कैसे -
बाबा के पास ट्रस्ट हैं जिसमे दान आता है कई कपनियां हैं और बाबा ने योग और आयुर्वेद का इतना अधिक प्रचार किया है की इतना धनोपार्जन कोई बड़ी बात नहीं है और इसके अतिरिक्त बाबा सदैव अपनी संपत्ति की जांच के लिए तैयार रहे हैं और अभी भी हैं|
बाब अपनी सपत्ति विकास में क्यों नहीं लगते - योग शिविर का शुल्क क्यों - दवाइयां बाजार से महंगी क्यों
सबसे पहली बात जिसे साधारण भाषा में लोग विकास कहते हैं उससे केवल पूंजी पतियों का विकास होता हिया जनता का तो विनाश ही होता है लाल गलियारा उस विकास चक्र का हीपरिणाम है | बाबा रामदेव के योग शिविर के कोई फीस नहीं होती बस जो लोग नियमित रूप से दान देते हैं वो शिविर में मंच के निकट बैठते हैं |इसके अतिरिक बाबा रामदेव के सभी कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण होता है और जो लोग शिविर में होते हैं वो भी बाबा को स्र्क्रीन पर देखते हैं जो की tv पर देखने जैसा ही होता है | बाबा के दिव्या फार्मेसी की कुछ दवाइयां कुछ महंगी इसलिए हो सकती हैं की वो विशुद्ध तरीके से बनाई जाती हैं और वो केवल स्वर के लिए नहीं अपितु स्वास्थ्य के लिए बनाई जाती हैं |
बाबा रामदेव के राजनैतिक लक्ष्य हैं
एक तरफ तो लोग कहते हैं की की राजनीती में सारे भ्रष्ट लोग हैं कोई भी सही व्यक्ति नहीं आना चाहता है राजनीती में और अब अगर आ रहा है तो उसका भी विरोध | इसके अतिरिक्त बाबा रामदेव ने स्वयं कहा है की वो कोई भी मंत्री पद ग्रहण नहीं करेंगे |
अब भी किसी की कोई और भी शंका हो तो पूछ लीजिये उसका भी समाधान कर दिया जाएगा |

37 टिप्‍पणियां:

  1. अंकित जी आपने बहुत ही अच्छे तरीके से लोगों को जबाब दीऐ हैं मेरे ख्याल से अब तो बाबा पर किसी को कोई संदेह नहीं रह गया होगा, क्यूंकि आपका चुन चुन कर उदहारण देना यही सब प्रश्नों को समझने के लिए काफी है ! लगे रहीऐ हमें इस आंदोलन को शांत नहीं होने देना है मिल कर कुछ ना कुछ प्रयास करते रहेंगे, जितना हो सके फेस बुक पर ब्लॉग पर बाबा रामदेव जी के आंदोलन का प्रचार करते रहो !

    जवाब देंहटाएं
  2. जी हाँ असुरदल तो निरंतरता के साथ लगा हुआ है हमें भी पूर्ण समर्पण के साथ असत्य के धुंधलके को हटाने का प्रयास करते रहना चाहिए

    जवाब देंहटाएं
  3. A very well written article. Keep it up.

    Have a look at this article as well:

    http://indowaves.wordpress.com/2011/06/06/india-needs-a-revolution-to-wipe-out-the-repressive-brown-agents-of-raj-days/

    Arvind K.Pandey

    http://indowaves.wordpress.com/

    जवाब देंहटाएं
  4. अंकित जी,
    आपने आज सिरफिरे दिमागों से उपजे प्रश्नों को जिस धारदार तार्किक तलवार से काटा है वे सदा याद किया जायेगा. इसके लिये आपको साधुवाद.

    रणछोड़ जी कृष्ण का नाम यूँ ही नहीं पड़ा.
    इस तरह के रणछोड़ तो तमाम हुए हैं और आज भी 'रणछोड़ना' एक उपाय है निहत्थों के लिये... कुछ रणछोड़ कायरों की भाँति बैठ जाते हैं तो कुछ पुनः ऊर्जा के साथ रणक्षेत्र में लौटते भी हैं.
    निहत्थे के पास बचाव का सबसे पहला डिफेंस/सुरक्षा .. घात या प्रहार क्षेत्र से बाहर हो जाना होता है.
    देसी शब्दों में ... भाग जाना भी एक उपाय है. योग शिविर में यह विकल्प सभी के लिये खुला था. इसमें किसी को अपमानित करने का सवाल ही नहीं है. वहाँ कोई विकलांग नहीं था सभी के पास दो-दो हाथ और पाँव थे.

    जवाब देंहटाएं
  5. aum
    ankit ji aapne yatharth satya samne rakha hai
    dhanyabad

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रतुल जे ये बातें भी वही लोग कह रहे हैं जो स्वयं कभी भी इस सत्याग्रह के समर्थक नहीं रहे जो लोग उस रात रामलीला मैदान में थे वो भागने के इच्छुक नहीं थे सभी को बाबा रामदेव की सुरक्षा की चिंता थी और हर कोई यह जनता था की बाबा रामदेव की सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकी वह सेनापति थे और सेनापति की सुरक्षा पुरे अभियान की सुरक्षा होती है | मैं स्वयं इस घटना का प्रत्यक्षदर्शी था और मुझे तो कोई भी ऐसा नहीं मिला जो कह रहा हो की बाबा क्यों चले गए .

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुन्दर लेख ..एक एक बात का सिलसिलेवार जबाब दिया है आप न.
    अब खान गए ये खान्ग्रेसी..कोई जबाब नहीं सूझेगा इन श्वानो को अब

    जवाब देंहटाएं
  8. आशुतोष जी उनको नहीं आना है और वो नहीं आएंगे महत्वपूर्ण ये है की वो किसी को भ्रमित ना करने पायें

    जवाब देंहटाएं
  9. अंकित भाई साधुवाद...सबकी बोलती बंद कर दी आपने...सभी को उत्तर मिल गए होंगे...
    आपके सभी जवाबों से पूर्णत: सहमत हूँ...
    बुद्धुजीवियों को उत्तर देना आवश्यक था, यह काम आपने बखूबी किया| इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं...

    जवाब देंहटाएं
  10. @अंकित जी,
    सभी सवालों का, शंकाओं का आपने संतोषजनक जवाब दिया है..इस लेख के लिए हृदय के हर कोने से बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. कायरता!!
    हिंसक युद्ध से योद्धा का पिछेहट कायरता कहलाता है।
    सत्याग्रह कोई हिंसक युद्ध नहीं होता। वह तो अपने आपमें अहिंसक आन्दोलन होता है।
    एक योद्धा और संत की लडाई में अन्तर होता है…
    योद्धा के हिंसक लडने से दूर होना कायरता कहलाता है वही एक संत का सम्भावी हिंसा से दूर रहना वीरता कहलाता है।

    जवाब देंहटाएं
  12. सुधार

    सम्भावी को सम्भाव्य पढें

    जवाब देंहटाएं
  13. ankit jee aapne sach bola hai. kirpya ise bhee dekhe

    http://anil9gupta.blogspot.com/2011/06/blog-post_4957.html

    जवाब देंहटाएं
  14. Wow nice article
    mast tarike se jawab diya aapne bahut achcha laga padh kar.

    जवाब देंहटाएं
  15. कुतर्कियों को सटीक जवाब ।

    जवाब देंहटाएं
  16. ankit ji apka bohut bohut dhanyabad,mujhe aaj apse ek do nayi jankaria mili, ab mai bhi in bharishtacharion ke samarthako ka mooh tod jwab de sakunga......

    जवाब देंहटाएं
  17. धन्यवाद त्रिलोकी नाथ जी , जिनको नहीं मानना है है वो नहीं मानेगे परन्तु वो किसी को भ्रमित ना कर सकें इसका ही प्रयास कर रहे हैं हम और शायद यही हमें करना चाहिए ........

    रश्मि थोडा जल्दी में लिखा है .........इसीलिए उतना अच्छा नहीं लिख पाया

    जवाब देंहटाएं
  18. अंकित जी बहुत ही सुन्दर जबाब ! आखिर ये मीडिया वाले आज कल सबसे बड़ा चोर है ! सरकार की चापलूसी करने में लगे है ! आखिर भ्रष्ट तो ये ही है !

    जवाब देंहटाएं
  19. G.N.SHAW जी आप ने बिल्कुल सही कहा या तो मीडिया वाले बाबा से डरे हुए हैं क्योंकी वो खुद ही भ्रष्ट हैं या वो सब सरकार के इशारे पर कार्य कर रहे हैं | यह धर्म युद्ध को मासिक स्तर पर भी लड़ा जा रहा है और इस मानसिक स्तर पर सैनिक हम और आप हैं अब बस पक्ष चुनना है की किसकी तरफ से हम संघर्ष करेंगे ...........भारत माता के लालों की तरफ से या ....................

    जवाब देंहटाएं
  20. --अति-सुन्दर व सटीक.... के अतिरिक्त और कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं....बोलती बंद....इतने लोगों ने सब कुछ कह दिया है सच सच ,,.....बधाई ..आभार...

    जवाब देंहटाएं
  21. श्याम जी उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  22. Sadhuvad Dost, aap jaise hi vicharko ki jaroorat hai is desh ko, hume jan jan tak is muhim ko pehuchana hai aur sattasin logo ko unki aukat agle election me dikhana hai ye movement puri tarah safal raha. aapki line satya hain - लक्ष्य बलिदान नहीं अपितु जान चेतना थी,

    जवाब देंहटाएं
  23. vijen जी धन्यवाद , हम सब उस धर्मयुद्ध के सैनिक हैं अहमे अपना कर्तव्य निभाना है

    जवाब देंहटाएं
  24. अंकित भाई मै आपके इस लेखन को प्रणाम करता हूँ .....साथ में यह शब्द की ...
    तुफानो से लड़ना है चाहे चट्टान मिले पतवार मिले
    जब कलम कहानी हो तो कलम चले
    तलवार मिले तलवार चले

    जवाब देंहटाएं
  25. धन्यवाद रत्नेश जी , आप जैसे लेखकों का प्रोत्साहन ही हमें लखने की शक्ति और उर्जा देता है

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत अची तरीके से बहुत ही अची बात कही है आपने.धन्यबाद

    जवाब देंहटाएं
  27. tarkon aur tareekon mein mudde bhatak se gaye..
    mujhe lagta..thodi aakramakta mein kami aur behtar vichar manthan ki gunjaaish hai..saarthak nishkarsh par pahunchne ke liye...

    desh hit me aapka utkrisht lekhan prabhaawi hai..
    sadhuwaad..

    जवाब देंहटाएं
  28. प्रथम प्रारूप लेखन का कार्य किया जाना चाहिए था, यथाशक्य दबाव के, सिद्धांततः यह हो सकता था, परिमार्जन, परिशोधन, उन्नयन , और संशोधन तो पश्चातवर्ती कार्य माने जा सकते थे, आखिर नया विधान रचने का कार्य है, एक बार में ही सारी विकटें कैसे ली जा सकती थी, एक गेंद पर एक,
    पर अतिशय दबाव से तार टूटते से नज़र आने लगे हैं, टकराव क़ी मुद्रा और आक्रामकता सृजनात्मकता के योग नहीं ही हो सकते..

    जवाब देंहटाएं
  29. बाबा एक जन प्रवाह थे ,हैं और रहेंगे .आन्दोलन वापस लेना एक विश्राम भर है .अन्ना से भी इस आन्दोलन का कहीं कोई विरोध न था .यह तो एंटी इंडिया टी वी की दिमाग की खपत थी .दिग -विजय जी की सनक थी .

    जवाब देंहटाएं
  30. people will remember YOUGO YOUGO TAK who will support firmly BABA mission

    जवाब देंहटाएं

आप जैसे चाहें विचार रख सकते हैं बस गालियाँ नहीं शालीनता से